आर्थिक समीक्षा में स्पष्ट कहा गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार वैसी नहीं रहेगी जैसी पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिखी थी। संसद में शुक्रवार को पेश की गई वित्त वर्ष 2024-25 की आर्थिक समीक्षा में अनुमान जताया गया है कि अर्थव्यवस्था की गति वित्त वर्ष 2025-26 में 6.3 से 6.8 प्रतिशत के बीच रह सकती है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के पहले अग्रिम अनुमान के अनुसार चालू वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 6.4 प्रतिशत रह सकती है, जो पिछले वित्त वर्ष में 8.2 प्रतिशत थी। पिछली समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के लिए वृद्धि दर का अनुमान 6.5 से 7.0 प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया था। अब माना जा रहा है कि चालू वित्त वर्ष में आर्थिक वृद्धि दर 6.5 प्रतिशत के इर्द-गिर्द ही रह सकती है। समीक्षा में आर्थिक हालात को लेकर जो बातें कही गई हैं वे वास्तविक लग रही हैं।
समीक्षा में मध्यम से दीर्घ अवधि की उन चुनौतियों की भी विस्तार से चर्चा की गई है। वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए कम से कम अगले एक दशक तक भारत को सालाना 8 प्रतिशत की रफ्तार से वृद्धि करनी होगी। समीक्षा में कहा गया है कि यह लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत में निवेश की दर बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 35 प्रतिशत तक करनी होगी, जो इस समय लगभग 31 प्रतिशत है।
भारत को विनिर्माण क्षेत्र का आकार भी बढ़ाना होगा और तेजी से दुनिया में धाक जमा रही तकनीकों में निवेश बढ़ाना होगा। समीक्षा में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का भी उल्लेख किया गया है। आने वाले वर्षों में भारत को गैर-कृषि क्षेत्रों में 78.5 लाख से अधिक रोजगार के अवसर भी तैयार करने होंगे। दीर्घ अवधि तक टिकाऊ वृद्धि दर जारी रखने के लिए सबसे अधिक जरूरी निवेश दर बढ़ाना है मगर यह करना आसान नहीं होगा। प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश की मौजूदा स्थिति को देखते हुए विदेशी बचत के साथ कमी की भरपाई करने में परेशानी होगी। अगर पूंजी प्रवाह में विभिन्न कारणों से रुकावट आती है तो चालू खाते के घाटे का टिकाऊ स्तर जीडीपी का 2.5-3.0 प्रतिशत (अनुमानित) नहीं बल्कि इससे कहीं कम रह सकता है। यानी घरेलू स्तर पर बचत में इजाफा करना होगा।
सरकार को भी खर्च में कमी करनी होगी। भारत को एफडीआई बढ़ाने के सभी प्रयास करने चाहिए मगर इसे निवेश के स्तर पर भी अपनी क्षमता बढ़ानी होगी। समीक्षा में कहा गया है कि इसके लिए सरकार को कारोबार करना सुगम बनाने के साथ ही नियम-कायदे आसान एवं सहज बनाने होंगे। समीक्षा में कहा गया है, ‘कारोबार करना सुगम बनाने की पहल (ईओडीबी) 2.0 की जिम्मेदारी राज्यों सरकारों पर होनी चाहिए। राज्य सरकारों को कारोबार की राह में बाधाओं की पहचान कर उन्हें दूर करने के उपाय करने होंगे’। उदाहरण के लिए राज्य भूमि, भवन, परिवहन, श्रम और लॉजिस्टिक सहित अन्य पहलुओं पर नियम दुरुस्त एवं सरल कर सकते हैं। ये और बेहतर बनाए जा सकते हैं। नियमों के पालन का दबाव कम होने से वित्तीय एवं प्रबंधन स्तर के संसाधन आर्थिक गतिविधियों को तेज करने में किए जा सकते हैं।
घरेलू मोर्चों पर सुधार के अलावा मध्यम अवधि में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार काफी हद तक वैश्विक परिस्थितियों पर भी निर्भर करेगी। मध्यम अवधि में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर इस शताब्दी के शुरुआती दो दशकों की तुलना में कमजोर रह सकती है।
भू-राजनीतिक तनावों और वैश्विक व्यापार के मोर्चे पर उथल-पुथल से भी भारत की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है। इन सभी बातों का निर्यात पर भी असर होगा। भारत निर्यात के मोर्चे पर पहले ही पिछड़ गया है। समीक्षा में कहा गया है कि अगर शुल्क समझ-बूझ के साथ लगाए जाएं तो उन क्षेत्रों का विकास तेज हो सकता है जिनकी देश को फिलहाल अधिक जरूरत है। हाल के वर्षों में भारत ने शुल्कों में बढ़ोतरी की है इसलिए इस बात की समीक्षा भी होनी चाहिए कि इससे औद्योगीकरण में कितना सुधार हुआ है। कुल मिलाकर, केवल एक दस्तावेज में नीतिगत स्तर पर उत्पन्न सभी चुनौतियों से निपटने के उपायों का विस्तार से जिक्र करना मुनासिब नहीं है मगर आर्थिक समीक्षा में महत्त्वपूर्ण बिंदुओं का जिक्र किया गया है और इनसे नीतिगत उपायों को धार देने में मदद मिलनी चाहिए।